Wednesday, September 30, 2009

रोशनी किस जगह से काली है

फज़ल ताबिश नाम के इस ज़िन्दादिल इंसान को कभी कोई ‘उर्दू ज़ुबान का बांका शायर’ कहता है तो कोई ‘ख़ूबरू पठान और ख़ूबतर इंसान’. मुझे तो अब तक नहीं मालूम मैं उन्हें क्या कहूं. उनकी और मेरी उम्र में कोई 17 साल का फासला था मगर हमेशा बराबरी से दोस्तों का सा सुलूक करते रहे. फितरतन छेड़-छाड़ उनकी पहचान थी सो शायरी में भी सीधे-सीधे रिवायती शायरी की जगह नए ढब की शायरी करते थे. जो चीज़ें शायरी के दायरे से बाहर छूट जाती हैं उन्हीं पर उनका दिल आ जाता था.

अब ज़रा देखिए, कहते हैं कि –

रेशा-रेशा उधेड़कर देखो
रोशनी किस जगह से काली है

कहीं कहते हैं

मचलते पानी में ऊंचाई की तलाश फज़ूल
पहाड़ पर तो कोई भी नदी नहीं जाती

उनके कुछ शेर तो ऐसे हैं कि किसी वक़्त आपको लगे कि आपको ज़िन्दगी भर इसी तरह के किसी शेर की तलाश थी. मिसाल के तौर पर :

न कर शुमार कि हर शै गिनी नहीं जाती
ये ज़िन्दगी है हिसाबों से जी नहीं जाती

या फिर...
मैं किस-किस की आवाज़ पर दौड़ता
मुझे चौतरफ से पुकारा गया

***

वही दो चार चेहरे अजनबी से
उन्हीं को फिर से दोहराना पड़ेगा

***

चारो ओर खड़े हैं दुश्मन, बीचों-बीच अकेला मैं
जबसे मुझको खुशफहमी है, सब घटिया हैं, बड़िया मैं

***

छोटी-छोटी उम्मीदों पर लम्हा-लम्हा मरता हूं
जो जन्नत को तज आया था, उस आदम का बेटा हूं

***

जिस गुड़िया के दबने से सीटी बजने लगती है
’ताबिश’ उसके कदमों में क्यों ना अपना सर रख दूं

फज़ल भाई के बारे में उनकी शायरी के एक मजमूए में लिखा है ‘ ...पैदाइश 5 अगस्त 1933...53 मे क्लर्की...69 में एम.ए.(उर्दू) कर कालेज में लेक्चरर...80 से 91 तक मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी के सचिव...93 में रिटायर...’ और 95 में अलविदा.

वे शायर,कहानीकार,ड्रामा नवीस और उपन्यासकार थे यह दुनिया जानती है. वो ग़ज़ब यारबाज़ थे यह भोपाल और भोपाल को जानने वाला हर शख्स जानता है. दिन नौकरी और घर के लिए था तो रातें यार-दोस्तों के साथ ऐश के लिए. इसके बाद भी बहुत अनकहा रह जाएगा मगर इतना ज़रूर कहूंगा, कि अगर कोई यह मानता है कि ‘जिन लाहौर नहीं वेख्या, ओ जनम्या ही नहीं’ तो उसे यह भी मानना होगा ‘जो फज़ल भाई के घर ईद पर नहीं था, वो भोपाल में आया ही नहीं’.

6 comments:

  1. न कर शुमार कि हर शै गिनी नहीं जाती
    ये ज़िन्दगी है हिसाबों से जी नहीं जाती
    फजल ताबिश जैसे शायर की शख्शियत और बुलंदियों पर इतना ही की सही मायनों में जिन्दगी की शायरी करने वाले थे वो...उनकी ये पंक्तियाँ मेरी डायरी में नोट है आपने दिल से लिखा उन पर आभार

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  2. भोपाल की हर गली में फज़ल ताबिश की खुशबू अभी मौज़ूद है । उम्र में उनसे बड़े और छोटे उनके कई दोस्त ऐसे हैं जिनकी ज़िन्दगी से फज़ल ताबिश को निकाल दिया जाये तो कुछ भी ना शेष रहे । अभी फज़ल भाई को उनकी जगह मिलना बाक़ी है यह आप जैसे उनके दोस्त ही सम्भव कर सकते हैं । -शरद कोकास

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  3. मजा आ गया शेर पढ़कर । बिल्कुल अलग हैं ।

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  4. मजा आ गया शेर पढ़कर । बिल्कुल अलग हैं ।

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  5. अखबार विशेष में छपे आपके लेखों की तरह ही यह भी अलग हटकर है ...संगीत के प्रति आपकी दीवानगी भरी सोच तो प्रभावित करती ही है ...उस पर बच्चो जैसा निश्चल लेखन जो हर पाठक को आपसे जोड़ देता है ..
    बहुत बधाई और शुभकामनायें ...!!

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  6. bhaskar me publish lekh yhan bhi bhut khoob

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