Monday, September 14, 2009

दिल में बजे हारमोनियम

आज बात कुछ और करने चला था मगर कर कुछ और रहा हूं. वजह ? वजह यह कि दिमाग़ में कुछ और गूंज चली थी और दिल में कुछ और चल रहा था. दिमाग़ का शोर ज़रा थमा तो दिल की आवाज़ सुनाई दी. हमेशा की तरह उसी की सुनूंगा और उसी की कही सुनाऊंगा. शकील बदायूनी ने लिखा था ‘दिल में बजें प्यार की शहनाइयां’ मगर मेरे दिल में इस वक़्त बज रहा है हारमोनियम. सच कहता हूं यह जो हारमोनियम है न, जब बजता है तो बेचारा दिमाग़ भी चुपचाप दिल के साथ हो जाता है.

आप कहेंगे मैं भी क्या सिंथेसाईज़र के ज़माने में हारमोनियम की बात ले बैठा. मगर हजूर पहला हमरा बात सुनिए, फिर लगे तो कुछ कहिएगा. ठीक ? तो सबसे पहले सुनिए हमरा दिल-दिमाग में गूंज क्या रहा है ? : ‘हमपे दिल आया तो बोलो क्या करोगे ? हमने तड़पाया तो बोलो क्या करोगे ?’ (फिल्म दो उस्ताद) .यह सवाल है आशा भोंसले की आवाज़ में. और इन दोनो सवालों के बीच में हारमोनियम की आवाज़ ऐसे आती है जैसे उसे पता हो आपके पास इन सवालो का जवाब नहीं और वह ज़ुबान निकालकर आपको चिड़ा रही हो. अब बोलो का करोगे ?

मेरी सलाह मानें, इन छेड़ती हुई दो आवाज़ों की संगत को सलाम करें और कहें ‘ओ.पी.नैयर तुसी ग्रेट हो’. जी हां यह उन्ही का संगीत है. हालांकि मुजरे और भिखारी गीतों में लगभग सभी संगीतकारों ने इस साज़ का इस्तेमाल किया है मगर नैयर साहब का हारमोनियम प्रेम कमाल का था.जब मौका लगा उसका भरपूर और खूबसूरत इस्तेमाल किया. अब जैसे फिल्म ‘काश्मीर की कली” का मोहम्मद रफी वाला गीत याद कीजिए न –‘सुभानल्लाह हाय ! हंसी चेहरा हाय !, ये मस्ताना अदाएं, खुदा महफूज़ रखे हर बला से, हर बला से’. है न कमाल ? काश्मीर की हसीन वादियां. उस पर शम्मी कपूर जैसा खूबसूरत इंसान, अपनी मस्तानी उछल-कूद के साथ शर्मीला टैगोर के हुस्न की तारीफ गाता है तो लफ्ज़ों के बीच में हारमोनियम की आवाज़ ऐसी उठती है मानों डल झील का पानी खुशी में उछल-उछल कर इस मंज़र पर वाह-वाह कर रहा हो. यकीन न हो तो ज़रा गाना बजाकर हारमोनियम वाले पीस के साथ वा-वा,वा-वा..वा,वा.वा..वा गाकर देख लें.

नैयर साहब के सारे गाने गिनाने बैठूंगा तो खेल यहीं खत्म हो जाएगा. फिर भी कुछ मुखड़े तो याद किए ही जा सकते हैं. ‘ले के पहला-पहला प्यार’ (फिल्म सी.आई.डी), ‘कजरा मोहब्बत वाला, अंखियों में ऐसा डाला’ (किस्मत), ‘तेरा निखरा-निखरा चेहरा’ (सी.आई.डी 909). वगैरह.

ओ.पी.नैयर से काफी पहले हिन्दी सिनेमा की पहली संगीतकार जोड़ी हुस्नलाल भगतराम ने हारमोनियम का बेजोड़ इस्तेमाल किया है. 1949 की फिल्म ‘बड़ी बहिन’ के दो लाजवाब गीत हैं लता मंगेशकर की आवाज़ में जिनमें हारमोनियम का ऐसा बेमिसाल खूबसूरत इस्तेमाल हुआ है कि अगर आप इसे एक बार भी भी सुन लें तो शेष जीवन में आपको जब कभी या जहां कहीं हारमोनियम सिर्फ रखा हुआ भर दिख जाए तो आप इस साज़ को दिल ही दिल झुककर सलाम करेंगे. पहला गीत है ‘जो दिल में खुशी बनकर आए, वो दर्द बसाकर चले गए, हाय! चले गए ‘. इससे पहले कि आपको यह लाईनें आप लता की आवाज़ में सुनें उससे पहले यह पूरी की पूरी लाईनें हारमोनियम पर सुनाई देती हैं. सुनिए और सोचिए हारमोनियम जैसा खूबसूरत साज़ आजकल के गीतों में सुनाई क्यों नहीं देता.

दूसरा गीत है ‘चुप-चुप खड़े हो ज़रूर कोई बात है, पहली मुलाक़ात है जी पहली मुलाक़ात है’. दोनो गीत सुनकर अगर आप तय कर पाएं कि दोनो में से कौनसे गीत में हारमोनियम ज़्यादा खूबसूरत बजा तो कृप्या मुझे ज़रूर खबर करें. मैं तो पिछले अनगिनत सालों से तय नहीं कर पाया हूं.

संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने हारमोनियम का इस्तेमाल कम ज़रूर किया है, मगर क्या लाजवाब तरीके से किया है. मिसाल के तौर पर 1966 की फिल्म ‘मेरे लाल’ में लता जी का गाया गीत है ‘पायल की झंकार रस्ते-रस्ते, ढूंढे तेरा प्यार रस्ते-रस्ते’. इससे भी बड़कर 4 पेग का नशा देने वाला फिल्म ‘पोंगा पंडित’ का गीत ‘तेरे मिलने के पहले भी जीते थे हम, जीने वाली मगर बात कोई न थी’. इस गीत में प्यानो अकार्डियन और हारमोनियम की कमाल जुगलबन्दी है. और एल.पी. को उनके उरूज़ पर देखना हो तो फिर सुनिए फिल्म ‘लोफर’ का गीत ‘कोई शहरी बाबू, दिल लहरी बाबू, पग बांध गया घुंघरू, मैं छम-छम नचदी फिरां’.

आशा भोंसले की आवाज़ से पहले ओपनिंग में जब हारमोनियम बजता है, तो लगता है, खुद ही नाचना शुरू कर दूं. हारमोनियम से ऐसी जादू भरी आवाज़ पैदा करने वाले फनकार का नाम है मास्टर सोनिक. संगीतकार जोड़ी सोनिक-ओमी के मास्टर सोनिक बेमिसाल पेटी बजाते थे. लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जोड़ी के लगभग सारे हारमोनियम पीस इन्होने ही बजाए हैं.

हुस्नलाल-भगतराम में से हुस्नलाल जी वायलिन के उस्ताद थे तो भगतराम जी हारमोनियम के. ‘बड़ी बहन’ के गीत सुनकर देखिए, मेरी बात पर यकीन आ जाएगा.
ओ.पी.नैयर साहब के लिए यह काम करने वाले कलाकार का नाम है बाबू सिंह. शंकर-जयकिशन के लिए यह ज़िम्मेदारी निभाते रहे वी.बलसारा और संगीतकार गुलाम मोहम्मद के छोटे भाई मास्टर इब्राहीम.

इइसके अलावा 1960 की फिल्म ‘मुक्ति’ में भी संगीतकार मलय चक्रवर्ती ने भी बड़ा खूबसूरत गीत रचा है. ‘सितम भी तुम्हारे,करम भी तुम्हारे, पुकारें सितमक़श तो किसको पुकारें’ . इसी तरह फिल्म ‘चालीस दिन’ में अन्नु मलिक के पिता सरदार मलिक के संगीत में आशा भोंसले और मन्ना डे का गीत ‘नसीब होगा मेरा महरबां कभी न कभी, हाय, कभी न कभी’.

मगर इन सबका सरताज गीत, जिसमें हारमोनियम का ऐसा इस्तेमाल हुआ है कि हार्मोनियम के जनक एलेक्ज़ेन्डर डिबैन सुनते तो खुद को दाद देने लगते कि ‘वाह क्या चीज़ ईजाद की है मैने’. मै बात कर रहा हूं 1963 की सुनील दत्त की फिल्म ‘मुझे जीने दो’ के गीत ‘रात भी है कुछ भीगी-भीगी, चान्द भी है कुछ मद्धम-मद्धम, तुम आओ तो आंखें खोलें सोई हुई पायल की छम-छम’. हाय ! क्या ज़ालिम इस्तेमाल किया है संगीतकार जयदेव ने हारमोनियम का. चाहे उसका ओपनिंग पीस ले लें या फिर अंतरे में जल तरंग और तबले के साथ वाला पीस, बस कयामत है.

आप अगर किसी तरह इस कयामत के बाद भी बाहोश रहे तो दूसरे अंतरे की पहली लाईन पूरे होने का इंतज़ार करें – ‘तपते दिल पर यूं गिरती है’, ज्योंही लता मंगेशकर की आवाज़ ‘गिरती है’ कह भर पूरा करती है कि बिजली के तेज़ी से हारमोनियम की अवाज़ एक अंगड़ाई से लेती हुई उठ खड़े होने का आभास दे जाती है. इसके बाद जाकर लता जी इसे पूरा करती हैं – ‘तपते दिल पर यूं गिरती है तेरे नज़र से प्यार की शबनम, तेरी नज़र से प्यार की शबनम...जलते हुए जंगल पर जैसे बरखा बरसे रुक-रुक, थम-थम...छम-छम...छम-छम...छम-छम, छम-छम...छमछम.

नहीं मतलब हंसने वाली बात नहीं है. खुद भी एक बार ट्राइ कीजिए. अगर आपका हाल भी मुझसा न हो तो कहिएगा. बहरहाल, मैने दिल की सुनी, आपने मेरी सुनी. हिसाब बराबर. अब आप सुनेंगे कि सुनाएंगे, आप तय करें.
किसी मेहरबां की नज़र लग गई

हारमोनियम का जन्म फ्रांस में हुआ मगर हमारे देश में इसका आगमन हुआ उनीसवी शताब्दी में अंग्रेज़ मिशनरीज़ के आगमन के साथ. बंगाल के द्वारकानाथ घोष ने इसमें कुछ संशोधन कर इसे इतना सरल बना दिया कि यह घर-घर में लोकप्रिय हो गया. आज भी मन्दिरों और गुरुद्वारों में भजन-कीर्तन के समय इसी का इस्तेमाल होता है.

इतनी भारी लोकप्रियता के बावजूद भारतीय शास्त्रीय संगीत में हारमोनियम को एक हीन किस्म का साज़ माना जाता है. इसका कारण यह है कि हारमोनियम पर सारंगी की तरह मींड का प्रभाव पैदा नहीं किया जा सकता है जहां साज़ और आवाज़ का स्वर एक हो जाता है. और तो और आकाशवाणी पर भी इस साज़ के उपयोग पर पाबन्दी लगा दी गई थी.

इसके बाद भी कुछ लोग इस साज़ को बड़ा समान देते हैं. खासकर क़व्वाली गायक. क़व्वाली के शुरूआती दौर से भी ज़्यादा पचास के दशक में संगत के लिए यह एक अनिवार्य साज़ बन गया. साबरी ब्रदर्स,शंकर शम्भु और नुसरत फतेह अली खान जैसे फनकारों ने इसका बहुत इस्तेमाल किया है.

पश्चिमी संगीत में इसका फुटकर इस्तेमाल यहां-वहां होता रहा है और अब भी हो रहा है मगर बीटल्स ने अपने संगीत में हारमोनियम का खासा इस्तेमाल किया है. मगर यहां भारत के फिल्म संगीत से ढेर सारे दूसरे साज़ों के साथ हारमोनियम भी सिंथेटिक म्युज़िक से हारकर ओझल हो रहा है.

और...
और हां! एक बात और याद आई. क़व्वाली की बात करते एक क़व्वाली याद आ गई जिसमें हारमोनियम का बेंजो के साथ अदभुत इस्तेमाल हुआ है. ‘हमें तो लूट लिया मिल के हुस्न वालों ने, गोरे-गोरे गालों ने, काले-काले बालों ने’. 1958 की फिल्म ‘अल-हिलाल’ की इस अमर क़व्वाली ने अपने ज़माने में बड़ी धूम मचाई थी और आज 50 साल बाद भी संगीत प्रेमियों में यह उतनी ही मशहूर है. बेशक इसकी वजह हारमोनियम नहीं बल्कि बुलो.सी.रानी का संगीत और इस्माईल आज़ाद क़व्वाल की आवाज़ का जादू है मगर हारमोनियम का भी इसमें उतना ही योगदान है.

तो हुज़ूर यहां खत्म हुई हारमोनियम की बात. मगर अपनी बात तो जारी रहेगी न. सो सात दिन बाद देखता हूं दिल क्या कहता है. मतलब दिल जो कहेगा वही तो होगी हमारी-आपकी बात ‘आपस की बात’.

जय-जय.

( दैनिक भास्कर के रविवारीय ‘रसरंग’ में 04 मई 2008 को प्रकाशित )

4 comments:

  1. अच्छा लगा हारमोनियम के विषय में पढ़कर.

    हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    कृप्या अपने किसी मित्र या परिवार के सदस्य का एक नया हिन्दी चिट्ठा शुरू करवा कर इस दिवस विशेष पर हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार का संकल्प लिजिये.

    जय हिन्दी!

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  2. इस पोस्ट को यहां पढकर भी आनंद आया वैसे भास्कर मे भी पढ ही चुके हैं. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  3. हारमोनियम पर अच्‍छा रिसर्च किया है .. बहुत जानकारी मिली !!

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  4. It revived the memories!I was about to request you to please start a series on such less/rarely used music instruments or some unsual use in Hindi film songs.And Yes!"Raat bhi hai kuch bhigi bhigi....." is a masterpiece as far as harmonium is concerned and even I melt the way you melt listening to the harmonium in this song!Jai ho Jaidev ji!
    And a unsolicited suggestion regarding unusual use of instruments,however small:In the film Abhinetri,the song "sajna,more sajna,o sun kya kahe kangna,raat din tere meri to yahi ik shaam O sajna..."by Lataji.Just on the word..."O" there is a very minute harkat of tabla....!It just melts your heart(if one has it in the right place!).
    I am sure you can find innumerable examples of such instances which can really be of immense value for your fans.

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