सागर में एक मित्र बसते हैं – रमेश दत्त दुबे. हिन्दी के जाने-माने कवि-कथाकार. नवीन सागर की बदौलत उनसे मुलाक़ात हुई. मुहब्बत हुई. उनसे जितनी बार मिलो, उतनी बार अहसास होता है कि हम लोग अपने समय के अच्छे लोगों की क़द्र करना नहीं जानते. उनकी योज्ञता,क्षमता और ज्ञानशीलता के बारे में कुछ भी कहने की बजाय बेहतर होगा कि उनके एक बड़े काम की एक छोटी सी बानगी आपके सामने पेश कर दूं.
दुबे जी ने बहुत साल पहले बुंदेलखंड की लोकोक्तियों-कहावतों के संकलन का एक मह्त्वपूर्ण काम किया. इस पुस्तक का नाम है – कहनात. यहां प्रस्तुत कहावतें मतलब कहनात उसी पुस्तक से हैं.
सबसे पहले यह वाली -
इक राम हते इक रावना
बे छत्री, बे बामना
उनने उनकी नार हरी
उनने उनकी नाश करी
बात को बन गओ बातन्ना
तुलसी लिख गए पोथन्ना
किसी छोटी सी बात को बड़ा-चढ़ा कर कहने वाले के लिए कहा जाता है
इत्ते से लाल मियां, इत्ती लम्बी पूंछ
जहां जाएं लाल मियां उतई जाए पूंछ
नकली सम्मानो का दिखावा करने वालों के लिए कहा जाता है.
खा-पी के मों पोंछ लव
मुफ्तखोर
चार लठा के चौधरी, पांच लठा के पंच
जिनके घर में छह लठा, सो अंच गिने न पंच
शारीरिक शक्ति को न्याय मानने वालों के लिए कहा जाता है
आज भी हमारे ग्रामीण अंचल में महिलाएं ससुराल में नाम नहीं लेतीं. इस पर दुबे जी ने एक रोचक मिसाल दी है. ‘...पत्नी ने गुलाब जामुन बनाए. अब पति का नाम गुलाब और जेठ का नाम जमुना प्रसाद, ये नाम वो कैसे ले सकती थी सो अपने सहेली से बोली – ‘आज मैने मुन्ना के पिताजी और ताऊ को सीरा में डाला है. सहेली बोली – ‘आज मैं दुकान से वह लेने गई थी जो भगवान के आगे जलाया जाता है’. (उसके पति का नाम कपूर्चन्द था). लौटते में बीच रास्ते में मुन्ना के ताऊ जी खड़े थे. मैं तो एक पेड़ की ओट में छिप गई. जब वे चले गए तब घर लौटी. सास लड़ने लगी कि इतनी देर कहां लगा दी. अब मैं कैसे कहूं, सोचते-सोचते मैने कहा –
बैसाख उतरें बे लगत हैं, उनसें लगो असाढ़
गैल में आढ़े मिल गये, कैसें निकरें-सास
जाते-जाते, एक कहनात और.
पीतर की नथुरी पे इत्तो गुमान
सोने की होती, छूती आसमान
नयी बात बताई आपने , कहावतों में एक ज़माने भर का गाढा ज्ञान छूपा होता है...
ReplyDeleteक्या बात है केसवानी जी!!
ReplyDelete< चार लठा के चौधरी, पांच लठा के पंच
जिनके घर में छह लठा, सो अंच गिने न पंच>
ये कहावत तो हमने खूब सुनी है लेकिन ये नहीं मालूम था कि रमेह्श जी ने इन्हें संकलित किया है. मैं भी बुन्देलखंड की हूं सो मज़ा दोगुना हो गया.
वाह केसवानी जी आनंद आ गया...
ReplyDeleteनीरज
वाह आvह क्या बात है अपने लिये तो सभी नई कहावतें थीं धन्यवाद्
ReplyDeleteबहुत बढिया , बुंदेली मुझे बहुत पसन्द है ।
ReplyDeleteआढ़े का अर्थ नहीं समझ पडा ।
कुछ श्ब्दों के अर्थ भी देने चाहिये साथ में ।
जिसकी लाठी उसकी भैस
ReplyDeleteसही है
नयी कहावतों की जानकारी मिली मगर कुछ शब्दार्थ होने से इनती सार्थकता बढ़ जाती ...!!
ReplyDeleteएक बहन जी के पति का नाम शिवशंकर था वे " जय शिवशंकर जय सियाराम " इस भजन को कुछ इस तरह गाती थीं " जय मुन्ना के बापू जय सिया राम " आज लोक की इस चर्चा में आनंद आया ।
ReplyDeleteबहुत खूब साहेब...
ReplyDeleteपोथन्ना में दर्ज अन्ना वाले प्रत्यय का लोक में भदेस प्रयोग भी खूब हुआ है। आप समझ रहे होंगे। खास बुंदेली में ही इसका भदेस संस्करण भी लोकप्रिय है।
पहली बार इस धाम आना हुआ है। लगता रहेगा फेरा।
जै जै।
बैसाख उतरें बे लगत हैं, उनसें लगो असाढ़
ReplyDeleteगैल में आढ़े मिल गये, कैसें निकरें-सास
अब तो खोजना पड़ेगा यह संकलन.. :-)