Sunday, October 11, 2009

जुगनू मियां की दुम जो चमकती है रात को


एक शायर हुए हैं अशरफ अली खां फुग़ां. बहुत ही मस्त-मौला किस्म के इंसान थे. चुटकुलेबाज़ी और फिकरेबाज़ी का ऐसा शौक़ था कि उनकी शायरी में भी यही रंग नज़र आते हैं. पैदाइश का तो ठीक पता नहीं लेकिन 1186 में उनकी मृत्यु हुई.


मौका मिला तो इन हज़रत के बारे में कभी थोड़ा विस्तार से लिखूंगा. फिलहाल तो कुछ शेर, कुछ बातें पेशे-खिदमत हैं, जिससे उनकी तबीयत के बारे में खासा अन्दाज़ा हो जाता है.


अब ज़रा देखिये, किस तरह उस्ताद को उस्ताद मानकर भी खुद को ही उस्ताद बना बैठे हैं.

हरचन्द अब नदीम का शागिर्द है फुग़ां

दो दिन के बाद देखिये उस्ताद हो गया


इस चुहलबाज़ी के बावजूद भाषा का भी बहुत खूबसूरती से इस्तेमाल देखने से तालुक रखता है. कहते हैं कि -


मुझसे जो पूछते हो तो हर हाल शुक्र है

यूं भी गुज़र गई मेरी वूं भी गुज़र गई

आख़िर फुग़ां वही है इसे क्यों भुला दिया

वह क्या हुए तपाक वह उल्फत किधर गई


दिल को लेकर ज़रा उनके यह अन्दाज़ देखिए.


कबाब हो गया आखिर को कुछ बुरा न हुआ

अजब यह दिल है जला भी तो बेमज़ा न हुआ


और फिर कहते हैं :



मुफ्त सौदा है अरे यार किधर जाता है

आ मेरे दिल के खरीदार किधर जाता है


आबे हयात में उनको लेकर एक किस्सा है. एक दिन दरबार में फुग़ां ने एक ग़ज़ल पढ़ी जिसका काफिया था लालियां और जालियां. खूब दाद मिली. दरबार मॆं जुगनू मियां नाम का एक मसख़रा था जो राजा का काफी मुंह लगा था. उसने आवाज़ लगाई नवाब साहब, सब काफ़िये आपने बांधे मगर तालियां रह गईं. राजा साहब ने भी इस बात का जब समर्थन किया तो फुग़ां ने कहा को उन्होने तो इसे हक़ीर सी चीज़ समझ छोड़ दिया था. अब अगर फरमाइश है तो अभी हुआ जाता है.



उन्होने फौरन एक शेर पढ़ा :



जुगनू मियां की दुम जो चमकती है रात को

सब देख-देख उसको बजाते हैं तालियां



अब इसके बाद क्या हुआ होगा, यह भी कोई बताने की बात है ?


जानम समझा करो.


तालियां.

12 comments:

  1. वाह...शुक्रिया केसवानी जी...फुगां को ज़िंदा करने के लिए। तभी मैं कहता हूं
    बहुत ग़म है इस दुनिया में कुमार
    शुक्र है कहने को अपना ब्लॉग है।

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  2. वाह बहुत खूब. हम तो खुश हैं कि अब हमें रोज़ कुछ न कुछ नई जानकारी मिलती रहेगी.केवल रसरंग के भरोसे नहीं रहना होगा. ऐसे अनेक शायर हैं जिन्होंने अपने दौर में बहुत बेहतर लिखा है. लेकिन उन सब को ढूंढने का काम तो आप ही कर पाते हैं.

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  3. वाह ! क्या बात है ।
    शायरी और हाजिर जवाबी दोनों लाजवाब हैं !

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  4. कबाब हो गया आखिर को कुछ बुरा न हुआ
    अजब यह दिल है जला भी तो बेमज़ा न हुआ

    वाह क्या अंदाजे बयां है जनाब का...गज़ब...आपभी राजकुमार जी कमाल लिखते हैं...आपके ब्लॉग पर आना और पढना एक ना भुलाये जाने वाला अनुभव है...
    नीरज

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  5. गोया दिलचस्प रहा.....

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  6. राजकुमार केशवानी जी !

    सादर प्रणाम,

    असरफ़ अली खां फूगां और उनकी शायरी से परिचित करवाने के लिए धन्यवाद ।

    मनोज भारती
    http://gunjanugunj.blogspot.com

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  7. इस टिप्पणी के माध्यम से, आपको सहर्ष यह सूचना दी जा रही है कि आपके ब्लॉग को प्रिंट मीडिया में स्थान दिया गया है।

    अधिक जानकारी के लिए आप इस लिंक पर जा सकते हैं।

    बधाई।

    बी एस पाबला

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  8. आज ही सुबह-सुबह हिन्दुस्तान में पढ़कर पता लगा कि आप ब्लॉग जगत पर आ गए हैं.दिन की शुरुआत इससे और सुखद क्या हो सकती थी.चलो अब आपसे सीधे-सीधे रूबरू होने का मौका मिल जायेगा.
    मुझे याद है आपका जो पहला आलेख मैंने पढ़ा था,वह रसरंग में प्रकाशित दो क्षेत्रीय गानों को मिलाकर 'मैं क्या करुँ राम,मुझे बुड्ढा मिल गया ' गाने की व्युत्पत्ति के बारे में था.उस समय मैं दसवीं या ग्यारहवीं में पढता था.उसके बाद सिलसिला शुरू हुआ -पुराने रसरंगों को ढूँढ-ढूँढ कर लाने और उनकी कतरनें इकठ्ठा करने का और यकीन मानिए वे कतरनें मेरे पास अभी भी सुरक्षित रखीं हैं.फिर कभी-कभी ऐसी जगहों पर भी रहा जहाँ दैनिक भास्कर नसीब नहीं था.मैं तो यही सोचकर खुश हूँ अब आप सीधे बाजे वाली गली पर मिल जायेंगे और रसरंग के लिए भटकना नहीं पड़ेगा(वैसे ये भी पता चला कि अब रसरंग पर कुछ नहीं बचा जिसके लिए भटका जाए :) ) ..गली चौडी करवा लीजिये ..१० लोगो को तो मैं ही बता चुका हूँ आपके ब्लॉग पर आने की सूचना .
    ........
    आपका शुभेक्षु
    धीर चतुर्वेदी
    aawaramijaji@gmail.com

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  9. वाह जी गड़ गड़ गड़!!! ये तालियाँ ! और वो तालियाँ बहुत खूब !! पाबलाजी के ब्लॉग से आपका संपर्क सूत्र ज्ञात किया और घुस आये बजे वाली गली में धुन सुनने आपके बाजे की, आवाज सचमुच कर्णप्रिय मनप्रिय है जी !!

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  10. आदरणीय केसवानी जी ,इस पोस्ट में फुगां साहब के बारे में जानकर खुशी हुई ऐसे ही कई मोती हैं जो वक़्त के अन्धेरों में अपनी चमक खो बैठे हैं उम्मीद है उन पर भी आप रोशनी डालेंगे । एक मज़ाहिया शायर चिरकन मियाँ के बारे में भी हम लोग सुनते रहते है लेकिन उन पर कोई authentic जानकारी नहीं मिलती सो आपसे यह भी उम्मीद है । वन्दना जी ने सही कहा है अब आपको पढ़ने के लिये हर सप्ताह रसरंग का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा । उम्मेद यह भी है कि आप अपनी व्यस्तता में से ब्लॉग जगत के सुधी पाठकों के लिये भी समय निकाल लेंगे । प्रिंट मीडिया पर रवीश जी द्वारा आपके ब्लॉग का परिचय प्रस्तुत करने पर बधाई । -शरद कोकास ,दुर्ग छ.ग.

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  11. Zindabad ,purani yadein taaza karne ke liye shukriya,aage bhi aisi hi ummid hain.

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  12. एक शेर मैंने भी सुना है

    आ रही है बेतुलख्‍ाला से सारंगी की आवाजें

    लगता है कोई पेचिसे मुत्‍तला होगा ।

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