Monday, May 17, 2010

ज़माना गुज़रा है अपना ख़याल आए हुए

मैं अपनी हज़ार चीज़ों से ख़फा हूं - अपनी सूरत से. अपनी आदतों से. अपने अलालपन से. अपने सपनों से.

लोग कहते हैं इंसान के भेजे में भेजा होता है। मुझे लगता है मेरे भेजे में सिर्फ कबाड़खाना है. किसी भगोड़े फिल्मकार का कबाड़खाना. एक ऐसा फिल्मकार जिसने ज़िन्दगी के न जाने कितने लम्हों को अलग-अलग वक्तों के दौरान कभी इंसानी शक्लों में तो कभी ग़ैर-इंसानी शक्लों में अपनी रील पर उतार लिया और इस कबाड़खाने में डम्प कर दिया है.

सोचता हूं अगर अछा कवि होता तो इन फिल्मों को सुन्दर कविताओं में बदल लेता। अछा कथाकार होता तो कम से कम एक ख़ूबसूरत कहानी ही बना लेता. एक अछा एडीटर होता तो इस कबाड़े की फिल्मों में से कुछ मंज़र जोड़कर पहले न बनी एक फिल्म जैसी कोई फिल्म बना लेता.

गर यूं होता तो क्या होता ?

मैं तो कहता हूं जो होता तो क्यों होता ? आखिर मुझे पता ही क्या है कि क्या हो रहा है। मतलब ख़ुद अपने बारे में भी नहीं कह सकता कि क्या हो रहा है. बाहर की तो मैं जानता हूं अन्दर की मुझे क्या ख़बर।

10 comments:

  1. आप आ गए! आपको पता नहीं है कि मैं कितने लम्बे अरसे से आपकी राह देख रहा था.
    अब पोस्टों पर टिप्पणियां तो बाद में होती रहेंगीं. मैं तो आपको चार महीने बाद यहाँ देखकर ही खुश हूँ.

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  2. sahi kaha andar jaanna bahut zaruri hai ki kya ho raha hai..bahar ki to baharwaale hi bata dete hain apna kaun bataye...

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  3. "किसी की बात में दुनिया को हैं भुलाए हुए"

    "किसी बात पर मैं किसी से खफा हूँ"

    और ग़ालिब के अशआर

    अव्वल तो दिमाग में पोस्ट पढ़ते ही ये खयालात आ गए.

    लगता है चंद माह होने-न-होने के पशोपेश में बिताये हैं. फिर तो काफी मसाला होगा ब्लौग में ठेलने के लिए.
    'ठेलना' ओछा शब्द लगता है, लेकिन प्रतिष्ठित हो चला है.
    और बताएं...

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  4. सच कहा आपने ....कभी कभी...कुछ खालीपन सा लगता है....और वज़ह भी नज़र नहीं आती...बाहर- भीतर, भीतर-बाहर...सब कुछ....बस... गड्ड-मड्ड सा लगता है....

    www.jajvalya.blogspot.com

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  5. सच है. कई साल हुए आपको पढते हुए, लेकिन हमेशा दूसरों की खूबियां ही बतते रहे आप...अपने आरे में कभी कुछ नहीं... तो अब हो जाये??

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  6. agar aap inme se kuch ek hote to shayad RAJKUMAR KESWANI nahi ban pate, jiske harfanmaula pan ki duniya kayal hai

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  7. Sir
    Deewangi akl ki sab se badi surat hai .Hosh sirf sapna hai.Kya paya kya khoya mein ulgha deta hai.Sab se badi pareshani to khud apne astitv ki hi hai. FANI sb. ke lawzoon main arz hai zindgi ka fasana
    ham na the kal ki baat hai fani
    ham na honge woh din bhi door nahi
    shaffkat

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  8. manish shrivastavaJune 5, 2010 at 2:24 AM

    I am the biggest fan of your articles,KHASS KAR
    AAPAS KI BAAT.

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  9. एक लेखक या कवि अन्दर से कैसा होता है इसका आपने सही चित्रण किया है. आप एक महान शख्सियत हैं आप कुछ भी लिखेंगे दिल को भायेगा ही.बधाई!!!!

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  10. भाई राजकुमार जी आप भी कमाल की चीज़ हैं.क्या मैटर दे रहे हैं !मज़ा आ गया. सच कहूं, यह ब्लोग-व्लोग देखना मेरी आदत में शुमार नहीं , पर जनाब आपने तो बांध लिया है. बहुत खूब !
    vijay kumar

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