Friday, December 11, 2009

तस्वीर-ए-लापता : दिलीप चित्रे


कोई तीन साल पहले दिलीप भाई का एक मेल आया जिसमें उन्होने उन्होने अपनी एक सीधे उर्दू में लिखी गई छोटी सी नज़्म भेजी थी. आज उस तस्वीर-ए-लापता को पढ़ता हूं तो तब न समझ में आने वाली बातें समझ में आ रही हैं.

मैं यहां सभी दोस्तों के लिए उस मेल के कुछ ज़रूरी हिस्सों के साथ जस का तस पेश कर रहा हूं.

इसी के साथ चित्रे जी की एक पेंटिंग भी हैं.

Date: 21 May 2006 09:31:22 -0700

tasveer-e-lapatah hain yeh ...
mayoosi ke ek khaufnaak daur se guzaraa hoon main,
wahshat ki syah raahon se guzraa hoon main,
ab bas yahi chaahataa hoon ke main
jo mere hamdam hain unko bayan karoon
mere jahannum ke safar ki chand jhalaken...

(तस्वीर-ए-लापता है ये
मायूसी के एक ख़ौफनाक दौर से गुज़रा हूं मैं
वहशत की स्याह रातों से गुज़रा हूं मैं
अब बस यही चाहता हूं कि मैं
जो मेरे हमदम हैं उनको बयान करूं
मेरे जहनुम के सफर की चंद झलकें...)

...maine mere aziz dost Gulzaar Saheb ko ek chotisee nazm pesh ki thi, taaki apne marz aur dard ka unhe pata bata sakoon. Aaj mein uski naql aap ko e-mail se hi forward kar rahaa hoon.

Filhaal,
Khudaa Haafiz !

5 comments:

  1. दिलीप चित्रे जी से मिलने और बात-चीत करने का मौका मिला था . बेहद संवेदनशील और जहीन इंसान थे . कवि-अनुवादक-पेन्टर क्या नहीं थे वे . उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं .

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  2. कहाँ लापता हो गए दिलीप जी हम सब को छोड़कर ....

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  3. दिलीप चित्रेजी का नाम जरूर सुना है पर जानने का सौभाग्य नहीं मिला. उनकी पेंटिंग से उनके व्यक्तित्व और संवेदनाओं को कुछ कुछ जान पा रही हूँ....खूबसूरत इज़हार ....वंदना

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