Wednesday, December 9, 2009

दिलीप चित्रे नहीं रहे !


आख़िर कोई ख़बर इतनी बुरी कैसे हो सकती है ? इतनी बुरी कि वह कहने लगे कि दिलीप चित्रे नहीं रहे !


इतनी बुरी ख़बरों का गला क्यों नहीं घोंट दिया जाता ?


ऐसी तमाम बुरी ख़बरों को पैदा होने की इजाज़त नहीं मिलनी चाहिए जो दुनिया की हर अच्छी चीज़ को मौत देती हों.

कुछ देर पहले ही उदय प्रकाश ने ख़बर दी कि दिलीप चित्रे नहीं रहे. एक घड़ी को तो समझ ही न आया कि उदय क्या कह रहा है. जब समझा तो जी चाहा कि ज़ोर-ज़ोर से चीख़कर इस ख़बर का प्रतिकार करूं. कुछ गालियां बकूं कुछ ख़ुद को, कुछ ज़माने को और कुछ उसको जिसे मौत का नियामक कहा जाता है.


कुछ देर बाद दिलीप भाई का मुस्कराता हुआ चेहरा नज़र आया तो जी चाहा रो लूं. और कुछ मिनट गुज़रे तो यादें फिल्म की तरह आंखों के आगे चलने लगीं.


दिलीप चित्रे भोपाल में हैं. भारत भवन में वागर्थ के निदेशक. आते ही उनका भोपाल के बारे में एक अदभुत आब्ज़र्वेशन यार ये शहर तो नम्बरी लोगों का शहर है ! . कुछ वक़्त पहले ही उनने सुना है कि भोपाल की बस्तियों के नाम 1250,1464,1100 क्वार्टर्स और 74 बंगले, 45 बंगले, 8 बंगले और 4 बंगले हैं. बाद में उनका मज़ाक़ में किया गया यह आब्ज़र्वेशन ख़ुद उनके लिए हक़ीक़त बनकर सामने आया. नम्बरी लोगों ने उन्हें अपना नम्बरीपन दिखा दिया था.


शायद 1981 की बात या 1982 की. इन्दौर जाने वाली एक बस में दिलीप चित्रे और उनकी पत्नी विजया जी सवार हैं. उनके ठीक पीछे वाली सीट पर मैं, जिसकी उन्हें ख़बर न थी. इन्दौर में दलित साहित्य विमर्श का आयोजन था. विजया जी ने पूछा दिलीप, तुम्हें मालूम है इन्दौर में कहां, कैसे पहुंचना है ?.


रानी साहब फिक्र न करें. वहां बस स्टैंड पर हमारे लिए रथ मौजूद होगा जो हमें वहां ले जाएगा.

दिलीप भाई का आशय था कि वहां उन्हें रिसीव करने मध्य प्रदेश साहित्य परिषद के अधिकारी पूर्णचन्द्र रथ आयेंगे.


मैने पीछे से आवाज़ दी दिलीप भाई. रथ न मिले तो मेरे साथ आटो में चल सकते हैं.

उन्होने पीछे देखा और कहा ज़रूर. रथ को भी आटो में ही ले चलेंगे. और क्या.


ऐसे ख़ुश मिज़ाज और ज़िन्दा दिल इंसान से एक दिन इसी मौत ने क्रूर खेल खेला. उनसे उनका जवान बेटा आशय छीन लिया. आशय 1984 की भोपाल गैस त्रासदी का शिकार हुआ. 19 साल तक बीमारियों से संघर्ष करते हुए 2003 में दिलीप भाई और विजया जी को अकेला छोड़ गया.


इस सदमे ने दोनो को अन्दर से बुरी तरह तोड़ दिया. मगर दोनो ने एक दूसरे को इस तरह सम्हाला कि दोनो भरपूर जीते हुए लगे. एक-दूसरे को ढाढ़स देने का उपाय था जीवन को जीवन से बेहतर जीकर दिखाना. दुनिया की हर ऐसी चीज़ के साथ जुड़ना जो जीवन को एक नया अर्थ और विस्तार देती हो. औरों के जीवन में नया रंग भरती हो. जीने का उत्साह देती हो.


आज भी मेरे ईमेल बक्से में दिलीप भाई के भेजे हुए सैकड़ों निमंत्रण हैं कभी किसी आयोजन के , कभी किसी किताब या फिर कोई कविता/लेख पढ़ने के लिए. ढेर सारे सोशल नेटवर्किंग ग्रुप्स में शामिल होने के लिए. कुछ न हुआ तो फेस बुक के ज़रिये कभी शुभ कामनाओं का कोई गुलदस्ता या फिर कोई पौधा.


अब तक वे न जाने किन-किन बीमारियों से घिर चुके थे. इनमें लीवर कैंसर भी था. मुझे बहुत दिन तक यह मालूम नहीं हो पाया. जिस दिन मालूम हुआ उस दिन पशेमानी में एक मेल दिलीप भाई को भेजा.


दिलीप भाई,

सदमे में हूं.

अक्सर आपकी तबियत खराब होने की बात होती रही है मगर इस बात की ख़बर न थी कि बीमारी लीवर कैंसर है.

इस घड़ी ख़ुद को किस क़दर लाचार महसूस कर रहा हूं. ऐसा लगता है जैसे मुझे हाथ-पैर बांधकर पटक दिया गया है कि बस असहाय सा देखता रहूं. मगर आस एक है - आपकी जीवटता और आपकी जीजीविषा. ऐसा नहीं कि आपके बारे में पूरी तरह बेखबर रहा हूं. देखता रहा हूं कि आप लगातार सक्रिय हैं. किसी घड़ी लगा ही नहीं कि मौला आपसे कोई खेल खेल रहा है.

वैसे कान में बताने वाली बात यह है दिलीप भाई कि मौला अपने अज़ीज़ों से खेल सिर्फ हारने के लिए ही खेलता है. ठीक वैसे ही जैसे हम लोग बच्चों के साथ खेलते समय जीतने की बजाय हारकर खुश होते हैं.

मैं इस बार भी आपकी जीत और मौला को खुश होते हुए देख रहा हूं.

आमीन!

बेखबरी और लापरवाही की माफियों और दुआओं के साथ,

राजकुमार


दिलीप भाई बड़े थे. उन्होने मुझे माफ कर दिया. मगर मैं शायद उस ख़ुदा को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा जो हर दिन इस दुनिया से बेहतर इंसानों को उठाकर अपने पास बुला लेता है.

10 comments:

  1. Whom God loves ...dies soon ....
    कभी कभी यह लोकोक्ति सही महसूस होने लगती है ...!!

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  2. बहुत मार्मिक पोस्ट है और किसी अपने प्रिय का विछुड जाना बहुत दुखदाई है। दिलीप जी को हमारी भावभीनि श्रद्धाँजली। धन्यवाद्

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  3. बहुत दुखद. श्रद्धांजलि.

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  4. bahut dukhad...unse bimar dinon me bhi baat hoti rahi thi...facebook pr wo aksar kuch na kuch bhejte the...unki kavitaon se devtaleji ke anuwadon ke jariye jo parichay bna tha wah lagatar ghana hota gaya tha...ab unke na rahne se ek riktta mahsoos hoti rhegi...

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  5. ये क्या हो गया राजकुमार भाई... इतनी बुरी खबर .. अभी कुछ दिनो पहले ही फेसबुक पर उनसे दोस्ती हुई थी .. काफी बड़े थे वे मुझसे मै उन्हे दादा कहने लगा .. अभी अभी ... इतनी जल्दी उम्मीद नहीं थी ... कह दो कि आप झूठ कह रहे हो..।

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  6. दिलीप चित्रे का जाना बहुत बड़े कवि के साथ साथ एक बेहतरीन इंसान का जाना है - मेरा उनसे व्यक्तिगत परिचय नहीं था पर थोड़ा कुछ देवताले जी के ज़रिये जानता था उन्हें- सोचता हूँ देवताले जी कितने उदास होंगे या शायद हर चीज़ से हताश... मुझे आज सुबह कविमित्र तुषार ने बताया, वो तब शायद पूना के लिए निकल रहा था.

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  7. मन अवसाद से भर गया. जाना किसी का अच्छा नहीं लगता. फिर अपने किसी प्रिय का तो बिल्कुल भी नहीं.

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  8. श्रद्धांजलि.

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  9. सदमा ऐसा कि ज़िन्दगी हिल गयी है. श्मशान वैराग सा हो गया है. ऐसा कैसे हो सकता है कि कल जिससे बात हुई थी आज उसका निशाँ तक नहीं है. वह घर, उसमे रखी हर चीज़, हर चीज़, हर लम्हे, हर दस्तक पर जिसके निशाँ थे अब वह कहीं नहीं है. क्या यही जीवन है जिसके पीछे हम परेशान रहते हैं? बचपन से ही घर से, माँ- बाप से दूर रहा. अब इतने दिनों बाद एक घर, एक पिता सा कोई मिला और अब वह भी नहीं ! राजकुमार जी, आपसे जुड़ने की वजह भी दादा हो थे, आज उनका नहीं होना न जाने क्या कर गया है. होश नहीं आता है. कुछ संयत हो कर फिर बात करूंगा.
    तुषार धवल

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  10. apke shradha suman jaror un tak pahunche ...ek phol meri or se bhi...

    avinash

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